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लोकगीत / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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चलोॅ प्रेमी भैया प्रेम नगरिया नहाय रे लेवै ना
कि माता जी के घटवा नहाय रे लेवै ना ।
प्रेम नगरिया छै हरिद्वार शहरिया
कि देखी लेवै ना, कि हरि के दुअरिया देखी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में होय छै सत्संगवा
कि सुनी लेवै ना, हो गुरू के उपदेशवा से सुनी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में प्रेम बरसै छै
कि भींगी जैवै ना, प्रेम रसोॅ में सौंसे भींगी रे लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में गुरू जी रहै छै
कि करी लेवै ना, गुरू जी के दर्शनमा से करी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में सब्भे दिव्य विभूति
कि छुवी लेवै ना, हो सबके चरणमां से छुवी लेवै ना ।