भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोकगीत / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:51, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
चलोॅ प्रेमी भैया प्रेम नगरिया नहाय रे लेवै ना
कि माता जी के घटवा नहाय रे लेवै ना ।
प्रेम नगरिया छै हरिद्वार शहरिया
कि देखी लेवै ना, कि हरि के दुअरिया देखी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में होय छै सत्संगवा
कि सुनी लेवै ना, हो गुरू के उपदेशवा से सुनी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में प्रेम बरसै छै
कि भींगी जैवै ना, प्रेम रसोॅ में सौंसे भींगी रे लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में गुरू जी रहै छै
कि करी लेवै ना, गुरू जी के दर्शनमा से करी लेवै ना ।
प्रेम नगरिया में सब्भे दिव्य विभूति
कि छुवी लेवै ना, हो सबके चरणमां से छुवी लेवै ना ।