Last modified on 11 जून 2016, at 08:04

पावस गीत-2 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:04, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सावन में मासें हो, सावनमें मासें कि सावनमें मासें
बहै पुरवैया, सावनमें मासें
मौसम तेॅ ठंडा, बरसा नै हुऐ
कि कैसें होतै ?
किसनमां के रोपा कैसें होतै ?
रोपा नै होतै, अकाल पड़ी जैतै
कि मची जैतै
गाँवोॅ में हाहाकार मची जैतै ।
सुनी चिल्लाहट नेतागण दौड़तै
कि की देतै ?
चूड़ा, गुड़, तेल, साबुन, नमक छींटतै
ई मौका अफसर केॅ बड्डी फबतै
कि की करतै ?
कि आधा-आधा राहत माल घोॅर भेजतै ।