भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फसल गीत / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:07, 11 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धानोॅ के कियारी आरी घूमै छै किसनमां
से झूमी-झूमी ना, हो झूमी-झूमी ना ।

धान काटै छै कटनियाँ
से घूमी-घूमी ना, हो घूमी-घूमी ना ।

धनमा केॅ देखी हिया हरसै किसनमा
के रसी-रसी ना, हो रसी-रसी ना ।

बायरो के साथें-साथें राखै धान कटनियाँ
से मुट्ठी-मुट्ठी ना, हो मुट्ठी-मुट्ठी ना ।

देखी-देखी केॅ किसनमा के फाटै छतिया
से रही-रही ना, हो रही-रही ना ।

कहै छै किसनमां तेॅ बोलै छै कटनियाँ
से रूठी-रूठी ना, हो रूठी-रूठी ना ।

हम्में कल सें काटवौं नैं धनमा
से रिझी-रिझी ना, हो रिझी-रिझी ना ।

होय केॅ लाचार बोलै रे किसनमा
से लीहोॅ-लीहोॅ ना, हो लीहोॅ-लीहोॅ ना ।