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काल बंधा है / केदारनाथ अग्रवाल

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काल बंधा है

दिव-देवालय

के पाषाणी

वृषभ कण्ठ से;

बधिर, अचंचल,

घंटे जैसा

मौन टंगा है

आसमान से

भू तक लटका;

मैं अनबजा

वही घंटा हूँ ।