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चमरौधे के जूते / स्वप्निल श्रीवास्तव

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चमरौधे के जूते इन दिनों
सुदूर देहातों में नही
दिखाई देते
उनका चलन बन्द हो
गया है
उनकी जगह आ गए हैं
क़ीमती जूते
उनकी क़ीमत चमरौधे
जूते से कई गुना
अधिक है,

मुझे पिता के चमरौधे के
जूते की स्मृति है
वे गाँव से ढाई कोस
दूर मोचियों के गाँव से
लाते थे, चमरौधा जूता
उसमें डालते थे सरसों का तेल
ताकि मुलायम हो जाए
चमरौधे जूते
चलने में कोई परेशानी
न हो,
चमरौधा जूता, पहनने के
शुरू में उन्हे काटता था
वे बताते थे चमरौधा जूता नहीं
मरे जानवर के दाँत
हमे काट रहे हैं

वे चलते थे, भचर-भचर
बोलता था जूता
उसकी ध्वनि सुन कर वे
मुस्कुराते थे
धीरे-धीरे वे जूते में अपने
पाँव की जगह बना लेते थे
जबसे चमरौधे जूतों का
कारोबार बन्द हुआ
बाज़ार में आ गए नए
क़िस्म के जूते, वे चिन्तित
रहने लगे थे,
उन मोचियों के लिए जिनका
कारोबार बन्द हो गया था

पिता जीवित होते तो देखते
आदमी के जूते नहीं पाँव भी
बदल गए हैं।