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नूतन का आलोक / केदारनाथ अग्रवाल

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नूतन का आलोक

पुरातन की बाँहों में नहीं बंधेगा,

यह अभिनव आलोक

सभासद अथवा मंत्री
उस संसद का नहीं बनेगा :

जिस संसद का

नाम-काम गुण-गौरव-गायन

पतझर को विस्तार दिए है

जिस संसद की दृष्टि भ्रष्ट है,

सृष्टि कष्ट है,

जिस संसद को जन-मन-दोहन पुष्ट किए है ।