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एकरोॅ पहिलेॅ / वसुंधरा कुमारी
Kavita Kosh से
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हेनोॅ तेॅ कभियोॅ नै होय छेलै
कि विपरीत दिशा सेॅ ऐतेॅ
ई बिन्डोवोॅ भिड़ी जाय
ई पहाड़ लड़ी जाय
हजारो लहास सड़ी जाय
आरो जीत्तोॅ आदमी के आँखी सेॅ
लोर तांय नै टपकेॅ,
की लातूर नाँखी
आदमी के आँखो सूखी गेलोॅ छै ?
जो ई सच छेकै
तेॅ आय न कल
कल नै परसू
बारीस तेॅ बरसवे करतै
लातूर के रोम-रोम मेॅ
झील लहरैतै
मरत आदमी नै रहतै।
ऊ जे बचतै, आदमी नै
बोचे बचतै,
मशान के कोन्टा में बैठलोॅ
देवता कानतै ।
एकरोॅ पहले कि आदमी के आँख सूखी जाय
इन्द्र के गीत गावौं
मेघ केॅ बुलावौं
समुन्दर केॅ हँसावो
नदी केॅ खोचोॅ भरौं
एक्के साथ नै हुवेॅ तेॅ नै
कोय तेॅ शुरू करोॅ