भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दोहे / सुभाष नीरव
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:53, 14 जून 2016 का अवतरण
(1)
बहुत कठिन है प्रेम पथ, चलिये सोच विचार।
विष का प्याला बिन पिये, मिले न सच्चा प्यार॥
(2)
भूख प्यास सब मिट गई, लागा ऐसा रोग।
हुई प्रेम में बांवरी, कहते हैं सब लोग।।
(3)
बहुत गिनाते तुम रहे, दूजों के गुणदोष।
अपने भीतर झाँक लो, उड़ जायेंगे होश॥
(4)
बोल बड़े क्यों बोलते, करते क्यूँ अभिमान।
धूप-छाँव सी ज़िन्दगी, रहे न एक समान॥
(5)
बूढ़ी माँ दिल में रखे, सिर्फ यही अरमान।
मुख बेटे का देख लूँ, तब निकलें ये प्राण॥