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देर हो गई है... / केदारनाथ अग्रवाल

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देर हो गई है दिवाकर को गए अदृश्य में

विवर्ण हो गया है सवर्ण तट पर खड़ा

पूर्व का ऎरावत

निकट आ ही गया है बरौनियों से बेधता

विकट अंधकार

खुल कर फैल ही रहा है अब

सविस्तार
श्याम केश-भार

चकित कर रहा है अब भी

जल में जीवित
डूब गए सूरज का
अपराजित प्रकाश ।