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सहज खोले अतीन्द्रिय सुगन्ध के केश / केदारनाथ अग्रवाल

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सहज खोले अतीन्द्रिय सुगंध के केश

टिमकते प्रकाश का पाल ताने प्रकृति

चलती चली जा रही है विस्मरण में

बही हो जैसे किसी की कोई नाव ।