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आईने सिर्फ़ सच ही नहीं बताते / रश्मि भारद्वाज

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आईने में झाँकती बेचैन आँखें
खोजती हैं अपनी पहचान,
अतीत के रौंदे हुए सपने
उलझे हुए आज़ की लकीरें
और डरावने कल को परे हटा
खोज लाते हैं हम हर बार
एक अज़नबी चेहरा

आईने सिर्फ़ सच ही नहीं बताते
रखते हैं हिसाब
एक पूरी उम्र का
सिखाते हैं सुकून से ताउम्र
ख़ुद से भाग सकने का हुनर