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सूझै अखियाँ नै / देवकीनन्दन बैरख
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भरलै एङनोॅ घोॅर मोर
पनियाँ बढ़लै बड़ी जोर
जैबै कहाँ, कोन ओर
सूझै अखियाँ नै मोर ।
घरोॅ के भीत काठी कोर
छप्पर खपड़ा फूस बटोर
सब्भे बहैलकै मोर
सीऔं फाटलोॅ पटोर ।
नीचें ऊपर पानी जोर
रहौं सड़कोॅ के कोर
नै छैं तनिको इँजोर
केकरोॅ के पोछतै लोर ।
खेत-पथारी आरो बैल
कनताय गंगा में गेल
कहूँना दिनमा धकेल
विधि के कैसनोॅ खेल ।
जे रिलीफ सरकारेॅ देल
बंटवैया सब बांटी लेल
भुखलोॅ भुखले रही गेल
कैसनोॅ धन्धा बेमेल ।
ललना भेलै बेमार
डाक्टर आबै नै पार
नैया बीच मंझधार
टूटलोॅ छै पतवार ।
डुबलै खेतवा खम्हार
बैलवा गैया के भार
मथवा पर बोझ अपार
तनिको नै छै ठहार ।
मन केॅ राखें मसोस
करबें कतनाय अफसोस
एखनी धरल्हैं सें जोस
पार लगतौ ई कोस ।