Last modified on 24 जून 2016, at 10:56

गंगा-2 (रात में) / कुमार प्रशांत

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 24 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार प्रशांत |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात में नदी चढ़ी
पाट फैला -
फैलता हुआ
दोनों किनारों को जोड़ गया.
नदी मुझ तक पहुँची
मैं कहीं छूट गया!

नदी
तुमको मिला मैं ?