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हमारा भविष्य / प्रेमनन्दन

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कूड़े-कचरे के ढेरो से
प्लास्टिक की थैलियाँ
लोहे के टुकड़े
काग़ज़ और गत्ते
ढूँढ़ता-सहेजता,
सिर पर
कचरे का बोझ लिए
भटकता हमेशा
सड़क के किनारे-किनारे
इस नर्क से उस नर्क तक
हर दिन
हमारा भविष्य।

जाएगा उन्हें लाद कर
पीठ पर
कबाड़ी की दुकान तक
बेचेगा --
पाएगा -- दो-चार रूपए
ख़रीदेगा --
पान की गुमटी से
पान मसाले की पुड़िया
फाड़ेगा उसको
खाएगा
और पिच-पिच करता
चल देगा फिर उसी नर्क की ओर
हमारा भविष्य !