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स्त्रियाँ.. कुछ सवाल / प्रेमनन्दन

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( एक )

पढ़ना-लिखना
तकनीकें सीखना क्या
zरूरी नहीं है उनके लिए?

उन्हें क्या हमेशा
चूल्हे-चौके, घर-गृहस्थी के बीच
खटना है?
माँ-बाप, भाई-बहन
पति एवं बच्चों के बीच बँटना है?

( दो )

आँसुओं में डूबना-उतराना
और बाहर से मुस्कुराना
अपनी इच्छाओं की भेंट चढ़ाना,

रौंदे हुए अपने सपनों पर
दूसरों की इच्छाओं के
ताजमहल खड़े करना,
बस क्या यही नियति है उनकी?

( तीन )

वे आँचल सहेजती हैं
लोग खींचते हैं,
वे सिकुड़-सिकुड़ चलती हैं
लोग भींचते हैं,

उनकी हँसी छीन कर
लोग मुस्कुराते हैं,
फब्तियाँ कसते हुए
हँसते-इठलाते हैं !

( चार )

वे कभी नहीं जीतीं
अपनी ज़िन्दगी
हमेशा जीतीं हैं
दूसरों की ज़िन्दगी,

दूसरों के आदेशों के
पीछे-पीछे चलती हैं
दूसरों की इच्छाओं के
साँचे में ढलती हैं,

रोज़ आँसू को पीतीं हैं
फिर भी हँस कर जीतीं हैं ?

( पाँच )

माँ, बहन, बेटी,
लुगाई हैं वे
फिर भी जातीं
सताई हैं वे,

ख़ुद को मिटा कर
सब कुछ लुटा कर

करती हैं सबकी सेवा
क्यों चाहते हैं लोग फिर
उनका अस्तित्व ही मिटाना।