भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तबला / विवेक निराला

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:17, 1 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विवेक निराला |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी की खाल है
जो खींच कर मढ़ दी गई है
मढ़ी हुई है मृतक
की जीवन्त भाषा।

मृतक के परिजनों
का विलाप कस गया है
इस खाल के साथ।

वादक की फूँक से नहीं
खाल के मालिक की
आख़िरी साँस से
बज रही है वह बाँसुरी
जो सँगत पर है।

धा-धा-धिन-धा
और तिरकिट
के पीछे
एक विषादी स्वर है।