भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कागज-कत्तर कलम-दवात / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:38, 10 जुलाई 2016 का अवतरण
कागज-कत्तर कलम-दवात, ईंटा-माँटी सोना के ठाठ
ईंटा-माँटी सोना के ठाठ, ठाठ गिरा दे पूरा आठ।
पूरे आठ करै छै सासन, बाँकी तेॅ सुनै लेॅ भाखन
जाँच कमीशन, अनशन-बैठक, रोज पढ़ैथौं नैका पाठ।
लम्बा-चैड़ा बाते खाली, हर कामोॅ में हाथे खाली
मोन मुताबिक कुछ नैं मिलथौं, देखै के बड़का ठो हाट।
पाँच बरिस में मोहर मारोॅ, मिलथौं कारखी दीया बारोॅ
हूनी तेॅ चन्दन रं महगोॅॅ, हम्में की ? हममें तेॅ काठ।
अखबारोॅ में हल्ला खाली, सौंसे देश में गल्ला खाली
राजघाट केॅ छोड़ोॅ तोहें, देखोॅ आपनोॅॅ-आपनोॅ घाट।
सा रे ग ग रे सा ग म, एक कोठरी में आठ ठो हम्में
हुनका कोठी अकेले चहियोॅ, देखी ला देशोॅ के लाट ।