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औका-बौका तीन तड़ौका / अमरेन्द्र

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औका-बौका तीन तड़ौका, लौव्वा-लाठी-चन्दन-काठी
बाग रे बग डोल-डोल, आबेॅ की लोगोॅ के मोल।

लोगोॅ सेॅ जादा तेॅ दाम, मिट्टी के आबेॅ, हे राम
नरमेघोॅ के होमµ हुवाम, जानोॅ के दू टाका दाम
इक-दू टा नै छै बदनाम, कत्तेॅ कैटभ के ई काम
लोगोॅ के छीलै छै चाम, जानेॅॅ के दू टाका दाम
भोरे होय छै राम-सलाम, साँझे हुनकोॅ काम तमाम
होयले जाय छै मँहगोॅ माँटी, लौव्वा-लाठी, चन्दन -काठी
बाग रे बग डोल-डोल, आबेॅ की लोगोॅ के मोल।

ई केहनोॅ भागोॅ के चाल, लोगोॅ लेॅॅ लोगे छै काल
मिट्टी लोहू सेॅ छै लाल, लोगोॅ लेॅ लोगे छै काल
सगरे सन्नाटा रोॅ जाल, लोगोॅ लेॅ लोगे छै काल
ई ऐलै केहनोॅ ई काल, नरमुंडोॅ रोॅॅ पिहनी माल
नांचै छै उमतैलोॅ व्याल, लोगोॅ लेॅ लोगे छै काल
हम्में तोहें पाठा-पाठी, लौव्वा-लाठी, चन्दन-काठी
बाग रे बग डोल-डोल, आबेॅ की लोगोॅ के मोल ।