भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक सफ़र ऐसा भी / शहनाज़ इमरानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:34, 10 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शहनाज़ इमरानी |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शहर की मसरूफ शाम
बहुत सी चीज़ों को पीछे छोड़ते हुए
भागती कारें, बाईक्स, बसें
पीछे छूटती जाती हैं साईकिलें
और पैदल चलते लोग
अनगिनत होर्नों की आवाज़ें
सभी की आगे जाने की कोशिशें

कुछ देर बारिश
और फिर वही स्टेशन
खिच-खिच करता शोर
सफ़र में मुसाफ़िर यूँ मिले
जैसे पुरानी हो पहचान
पते लिए और अदले-बदले मोबाइल नम्बर
 
टिक-टिक करती रात ताश के पत्तों और
खुराफ़ातों की कहानियों में बीती
दिन के साथ अंगडाई लेकर उठे थे
बचपन, रंग, और जो नाम
सभी कॉफी की ख़ुशबू में घुल गए

मुक़ाम पर पहुँचे तो सभी को जल्दी थी
अपना-अपना सामान उठाया
सलाम हुआ न हाथ मिलाया
सर्दी की ठण्डी -ठण्डी साँसे
घना कोहरा और ज़ंग लगा सूरज
घर तक मेरे साथ आया।