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घरें-घरें बैबैठलोॅ छै नाग/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल
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घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग सावधान रहियोॅ
सावधान रहियोॅ हो, सावधान रहियोॅ
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग ।
ऐलै वसंत ऋतु, फूल खिलै बगिया
बांही जोरिये-जोरि, हाँसै खेलै सखिया
चोरबा के मची गेलै फाग ।
सावधान रहियोॅ ।
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग ।
देश आजाद भेलै, गजबे होलै
शहीदोॅ के सपना, सपने रहलै
साहू के जगलोॅ छै भाग,
सावधान रहियोॅ ।
घरें-घरें बैठलोॅ छै नाग, सावधान रहियोॅ ।