Last modified on 21 जुलाई 2016, at 10:56

द्रौपदी रक्षा / शब्द प्रकाश / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:56, 21 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह=शब्द प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

द्रौपदी हियामँ हरि को जो सुमिरन कियो, अंतर जनैया जानि मानि लवो भावरे।
अछय वचन आओ अँबर अमूह लाओ, पूर लाजते लजाओ दुशासन बावरे॥
धरनि कहत जाके पौरुषको अंत नाहि, ताकी बाँह थाकी परी आय तन ताव रे।
गोहन तियाको मन-मोहन छोड़ायो आनि, लायो पतिव्रत यशवेलि जग साँवरे॥13॥