भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
क्षणिकाएँ-2 / विपिन कुमार मिश्र
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:29, 26 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरज पंडित |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> 1...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
1
देवदूत समय पर आवै छै
कुछु-कुछु बाँटै छै
समय्ये पर देवदूत ऐलोॅ छै
बाँटे छै-
धीरज, गम आरो महगी ।
2
पेंच सें कसलोॅ जाय छै
जों अपना सिनी केॅ कस्हौं
तेॅ समझी लिहोॅ एकरा में
जरूरे कोय पेंच छै ।
3
हुनी किरिया खाय केॅ गेलै-
आरो वहाँ जाय केॅ
किरिया भूली गेलै
खाली खाय लागलै ।
4
हुनी परतीनिधि बनी केॅ गेलै-
हमर हिस्सा
परती रहलै आरो
निधि हुनी लै गेलै ।