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जुलुस / सुलोचना मानन्धर
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जीवनका थुप्रै क्षणहरू
जुलुस बनिसकेछन्
अझै झुक्याउँदै
सिङ्गो जिन्दगीलाई
जुलुस
जुलुसै भएर सकिँदै छ ।