भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

’कुछ नहीं’ / भावना मिश्र

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:47, 26 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

‘कुछ नहीं’
ये दो शब्द नहीं
किसी गहरी नदी के दो पाट हैं
जिनके बीच बाँध रखा है हर औरत ने
अनगिन पीड़ाओं, आँसुओं और त्रास को

इन दो पाटों के बीच वो समेट
लेती है सारे सुख दुःख

बहुत गहरे जब मुस्काती है
या जब असह्य होती है
मन की व्यथा
तब हर सवाल के जवाब में
इतना भर ही
तो कह पाती है
औरत
‘कुछ नहीं’