भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मत टटोलो उदासी को / भावना मिश्र
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:41, 27 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मत टटोलो उदासी को
इसकी नीव में बैठा दुःख
एक बहरूपिया है
हर बार धर लेता है
एक नई शक्ल
और हम बेज़ार होते हैं ये सोचकर
कि हज़ार कारण हैं हमारे पास
जी भर के रो लेने को
दुःख से उत्सर्ग में
नहीं है सुख की कुंजी
दुःख तो मकान की
इकलौती खिड़की है
जो बारबार लौटा लाती है
जीवन की ओर