भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
देशगान / नरेश 'जनप्रिय'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 05:38, 28 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश 'जनप्रिय' |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna}} <...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
आपनोॅ भारत के छै महिमा अपार हो
याहीं हिमालय, ताज, याही मंदार हो ।
सागर पखारै हरदम जिनकोॅ चरण हो
निकलै जहाँ खानोॅ सें सब्भे रतन हो
सतत् बहै गंगा में अमरित धार हो
आपनोॅ भारत के छै महिमा अपार हो
राम-कृष्ण-गौतम एकरे माँटी के लाल हो
तिरंगा सें शोभै देशोॅ के भाल हो
हरा चुनरी छै भारत माय के लहरदार हो
आपनोॅ भारत के छै महिमा अपार हो
पावी केॅ सीधा कोय नै बुझिहोॅ कमजोर हो
हमरा करै पक्षोॅ में दिहौ नै जोर हो
दुश्मन सें रहियोॅ हरघड़ी खबरदार हो
आपनोॅ भारत के छै महिमा अपार हो
पाक-चीन सबकेॅ देलकै गरदा फंकवाय हो
बनी गेलै दोसरोॅ देश डरोॅ सें बिलाय हो
पैन्हौं छेलै आभियो गुरू मान छै संसार हो
आपनोॅ भारत के छै महिमा अपार हो