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पगडंडी / महेश सिंह आनंद
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बदनियति के टक्कर सें
जिनगी भर
टकरैतें रहलोॅ छी,
हर मोड़ पर मिललै
खाई
गइनौनी बेरा में
धुँधलोॅ आकाश
के धुइयाँ
आगिन के लपट
आरो घुप्प अन्हरिया
साजिश के दलदलोॅ में
धँसलोॅ जिनगी
खोजै छै
आशा के किरण
विश्वास के छाँव
ममता के पगडंडी ।