समन्दर के किनारे / क्रिस्टीना रोजेटी
नहीं पता क्यों समन्दर हर समय इतना चिल्लाता है?
जैसे स्वर्ग से होकर बेदखल वह अपना शोक मनाता है,
पटकता रहता है अपना सिर वह तट की सीमाओं से हरदम,
रहती है उसकी अनन्त प्यास भी अतृप्त,
धरती की सारी नदियों से भी वह सन्तुष्ट न हो पाता है.
इसकी तलहटी में है सपनीला संसार,
प्यार के न जाने कितने चमत्कार
रत्न, जवाहरात, नमक और
न जाने कितने थिर, स्थिर, मुस्कराते फूल,
कोना कोना मधुरित करते जीवन्त फूल
गोल, चकत्तेदार या नुकीले अजीबोगरीब घोंघे,
तलहटी पर जमा जीवित नुकीली आँखें,
सब एक जैसे, पर सब जैसे अलग से,
सब पैदा होते बिना किसी पीड़ा के, और मर जाते
बिना किसी पीड़ा के ही, हाँ गुज़र जाते.
मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : सोनाली मिश्र
और अब पढ़िए कविता मूल अँग्रेज़ी में
By The Sea
Why does the sea moan evermore?
Shut out from heaven it makes its moan,
It frets against the boundary shore;
All earth's full rivers cannot fill
The sea, that drinking thirsteth still.
Sheer miracles of loveliness
Lie hid in its unlooked-on bed:
Anemones, salt, passionless,
Blow flower-like; just enough alive
To blow and multiply and thrive.
Shells quaint with curve, or spot, or spike,
Encrusted live things argus-eyed,
All fair alike, yet all unlike,
Are born without a pang, and die
Without a pang, and so pass by.