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प्योली और चिड़िया / अनिल कार्की
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प्योली* व चिड़िया
वह खिली
बसंत के पहले दिन
किसी पथरीली ज़मीन पर
इसी तरह होता है पुनर्जन्म
स्त्री का।
मेरी इजा1 का तो यहाँ तक
विश्वास है कि
स्त्री मरने के बाद चिड़िया बनती है
या फिर बनती है फूल।
वह बदला नहीं लेती
फूल बनना ही होता है एक दिन
उठी बंदूक का मकसद भी
या कि घर की चैहद्दियों से पार जाते कदमों का मकसद
चिड़िया बनना ही होता है
जब निपट लाल रंग हरियाता है
तो पीले रंग में बदल जाता है
तब पथरीली ज़मीनों पर प्रेमिका बनी स्त्री
सबसे पहले बसंत का परचम लहराती है
गाती है कहीं किसी डाने2 में
साल3 के पेड़ पर बैठकर चिड़िया
- एक जंगली पीला फूल। कुमाऊँ में जिसके साथ स्त्री के पुनर्जन्म की कथा का मिथक जुड़ा है 1.माँ 2.पहाड़ 3.एक वृक्ष