भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन में ज्वार / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:02, 10 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश रंजक |संग्रह=धरती का आयतन / रम...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धन के मन कॉप गये डर से।
जन के जीवन में ज्वार उठे
हक़ लेने को हक़दार उठे
कंजूस डरे कारीगर से।
तीखी-सी एक मशाल जले
शोषण के व्रण से, प्रण निकले
अक्षर टकराए पत्थर से।
(राग मालकोंस पर आधारित गीत)