Last modified on 14 अगस्त 2016, at 04:16

समोधन बाबा का तमूरा / आरती मिश्रा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:16, 14 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आरती मिश्रा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

1.

अरसे बाद
बना पाए मुट्ठीभर धागे
जिसमें और रंग न चढ़े कोई
माना कि रंग उचट भी न पाएँगे
थोड़ा तनकर खड़े हो गए वे
अपने लिबास पर इतराए

2.

पता ही न चला कब बारिश आई
कोई तूफ़ानी झोंका-सा
घुल गए रंग
धुल गए रंग
फिर भी रंगा बार-बार

3.

फटी ओढऩी तो क्या, लगाई थेगड़ी
सिला टाँका
चीख़-चीख़कर लगाई गाँठ

4.

गोधूलि बेला में बैठी देहरी पर
दिया-बाती बिसराए
कि बजने लगा तमूरा समोधन बाबा का
तारों की कम्पन में थरथराता स्वर रहीम का
वे गुनगुनाते मेरी बग़ल से निकल गए
मैं बिखरे धागे बीनकर
जोड़ने की जुगत में
एक बार फिर से लग गई