भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ईसुरी की फाग-18 / बुन्देली

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:37, 15 अगस्त 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=ईसुरी }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: ईसुरी

जौ जी रजउ-रजउ के लानैं
का काऊ से कानैं
जौ लौ जीने जियत जिन्दगी
रजुआ हेत कमाने
पैले भोजन करै रजऊआ
पाछे मो खौं खानै
रजउ रजउ को नाँव 'ईसुरी'
लेत लेत मर जानै।

भावार्थ

अपनी प्रेयसी "रजउ" के विरह में तड़पते ईसुरी कहते हैं — मेरे ये प्राण रजउ के ही लिए हैं, मुझे किसी से क्या कहना...? जब तक जीना है ,जीवन है तब तक रजउ के हित के लिए ही कमाना है (यानि उसका प्रेम अर्जित करना है)। पहले रजउ भोजन करेगी फिर मैं खाऊँगा। ईसुरी कहते हैं - मैं रजउ रजउ नाम लेते लेते ही मर जाऊँगा।