भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोॅन / अनिमेष कुमार

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:57, 3 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अचल भारती |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRachna}} <poem> म...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मनेॅ कुछु सोचै छै,
कुछु पावै छै
कुछु हेराय छै
ढेरे बातोॅ केॅ निहारै छै
आपनो भीतरी सेॅ झाँकै छै।
मोॅन कखनू दुःखोॅ सेॅ
उदास होय छै,
कखनू खुशी सेॅ।
तरबतर हो जाय छै,
यहे तेॅ मनोॅ रोॅ महिमा छेकै।

जे समझै छै,
मनोॅ के महिमा केॅ
तेॅ वही समझेॅ पारै छै
जिनगी रोॅ सच्चाई केॅ
मनोॅ रोॅ सीमा, असीम छै
है येहोॅ पारोॅ मेॅ छै,
आरो वहोॅ पारोॅ मेॅ छै
है तेॅ चारो दिस छै
है तेॅ सबरोॅ साथोॅ मेॅ छै।