Last modified on 5 अप्रैल 2008, at 00:10

झूठ सच के बयान में रक्खा / देवी नांगरानी

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:10, 5 अप्रैल 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} झूठ सच के बयान में रक्खा<br> बिक गया जो द...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

झूठ सच के बयान में रक्खा
बिक गया जो दुकान में रक्खा

क्या निभाएगा प्यार वह जिसने
ख़ुदपरस्ती को ध्यान में रक्खा

ढूँढ़ते थे वजूद को अपने
भूले हम, किस मकान में रक्खा

जिसने भी मस्लहत से काम लिया
उसने ख़ुद को अमान में रक्खा

जो भी जैसा है ठीक ही तो है
कुछ नहीं झूठी शान में रक्खा

ज़िंदगी तो है बे–वफ़ा ‘देवी’
इसने मुझको गुमान में रक्खा