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मुस्कान में जीवन / रमेश रंजक

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है अगर मुस्कान में जीवन
उसे जग में बिखेरो।

नयन खुल-खुल जाएँगे काले कमल के
जो खड़े हैं पंक-तल में हाथ मल के
मुक्त होकर राग जब सँयुक्त होंगे
चित्त जड़ता काँप जाएगी, चितेरो।

रागमय अनुराग से सारा सरोवर
कूल तक अपनी विजय बाहें उठाकर
सौंप देगा गन्ध की संचित धरोहर
तनिक उस औदार्य का सौन्दर्य हेरो।

है अगर मुस्कान में जीवन
उसे जग में बिखेरो।