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पूरे वतन के / रमेश रंजक

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शब्द, स्वर छलनी बदन के
रोज़ परदेसी बताए जा रहे
पूरे वतन के।

का पुरूषता शमन की
जिनको नहीं स्वीकार
दमन के विपरीत
जिनकी गूँजती टंकार

जो न अंगीकार कर पाए
नियम अन्धे नमन के
शब्द, स्वर छलनी बदन के।

जो न हो पाए कुटिल
चौहद्दियों में बन्द
जो खड़े हैं द्वंद्व के
मैदान में स्वच्छन्द

हाँक से, बाहर
निकाले जा रहे कलबल यतन से

और परदेसी बताए जा रहे
पूरे वतन के
शब्द, स्वर छलनी बदन के।