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जीतला के बाद / उचित लाल यादव

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चुनाव होलै
आरोॅ छुट्ठा घूमेॅ लागलै ऊ सब।
जें जोर जवरदस्ती जितैनें छेलै नेताजी केॅ।
सौंसे गाँव आतंक केॅ साया में जीयेॅ लागलै

आरोॅ नया नया जे मुखिया बनलोॅ छेलै
वें चानी पर चानी काटेॅ लागलै
बनलोॅ ठीक-ठीक नहर आरू डांड़ोॅ केॅ
फेरू सें बनावेॅ लागलै
कि झाड़ेॅ लागलै पैसा पर पैसा।

चुपचाप देखना यै देशोॅ के जनता रोॅ
नियति छेकै।
आकि ओकरोॅ मुर्खता,
जबेॅ कोय मुखिया या ओकरोॅ समर्थन में
खाड़ोॅ लोगोॅ सें पूछै तेॅ
मुखिया रोॅ जबाब होय छेलै
कि पैसा लै केॅ वोट दै वकतीं ई नै सोचनें छेलै
भ्रष्ट जनता रोॅ प्रतिनिधि ऐन्हें होय छै।
आभी कि जतना जितै बासतेंदेनें छियै
ओतनोॅ नै पूरलोॅ छै।