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खेत मेॅ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
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जन्मलै खेत मेॅ अर मरै खेत मेॅ।
काम रौदा-बताषे करै खेत मेॅ।
खूब कैता, करेली लधै झींगली
जब किसानोॅ के लेहू जरै खेत मेॅ।
जों किसानों के खुरपी हँसै जोर से
ते पपीता, कदीमा फरै खेत मेॅ।
घास-भूसा सरंग से नै आबै कभी
सब जनाबर मगँन से चरै खेत मेॅ।
रात झरिया पड़ै कि अन्धरिया रहै
दीप जुगनू के रोजे बरै खेत मेॅ।