भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम्में / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:26, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर' |अनुवादक...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्में कर्ज उतारै वाला।
हुनको दाव सुतारै वाला।

लोक-लाज ताखा पर राखी
गाय दुपचता गारै वाला।

अगल-बगल मेॅ मुड़झुलबा
सब बैठी के पुचकारै वाला।

पोथी-पतरा देखी-देखी
जनमै देह झमारै वाला।

भूत उतारै के नामोॅ पर
भूत बनै छै झारै वाला।