मधुशाला / परिशिष्ट / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र
खुद तेॅ नै पीयौं, दुसरा केॅ
मतर पिलाबै छी हाला,
खुद तेॅ नै छूवौं, दुसरा के
पर पकड़ाबै छी प्याला,
पर उपदेश कुशल बहुतेरों
सें सिखलेॅ छी ई हम्में,
खुद तेॅ नै पहुँचैं; दुसरा केॅ
पर पहुँचाबौं मधुशाला ।1
हम्में कैथ कुलोॅ सें ऐलौं
पुरखा मय रोॅ मतवाला,
हमरोॅ देहोॅ के लेहू में
पचहत्तर प्रतिशत हाला,
पुश्तैनी अधिकार ई हमरा
मदिरालय रोॅ ऐंगन पर;
हमरो दादा-परदादा के
हाथ बिकैलै मधुशाला ।2
कत्तेॅ के सिर चार दिनोॅ तांय
चढ़ी उतरलोॅ छै हाला,
कत्तेॅ के हाथोॅ में दू दिन
छलकी खलियैलै प्याला,
मतर सुरा के असर बढ़ै छै
साथ समय के, एकरौ सें
खूब पुरानोॅ होय केॅ हमरोॅ
खूब नशीला मधुशाला ।3
पितर-पक्ष में पूत उठैयोॅ
भले अघ्र्य नै, पर प्याला,
कहूँ गांग पर बैठी रहियोॅ
‘सागर’ में भरलेॅ हाला;
कोय जघोॅ रोॅ मिट्टी भींगेॅ
पाबी लेबोॅ तृप्ति केॅ
अर्पण-तर्पण करियोॅ हमरा
पढ़ी-पढ़ी केॅ ‘मधुशाला’ ।4