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मुट्ठी में दो-चार नहीं / दीपक शर्मा 'दीप'
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मुट्ठी में दो-चार नहीं
कोई तेरा यार नहीं
यूँ ही गले लगाएगा
ऐसा तो संसार नहीं
सच्ची बातें लिखता हो
कोई भी अखबार नहीं
कहता हूँ सो करता हूँ
भाई ! मैं सरकार नहीं
अपनी राह बनाओ ख़ुद
यूँ तो,बेड़ा पार नहीं
पूछ-पूछ कर मारेंगे
कहो दो मैं बीमार नहीं
चलो तवायफ़ ग़ाफ़िल है
हम तो इज़्ज़तदार नहीं
माना कि बेकार हैं 'दीप'
इतने भी बेकार नहीं I