भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरू दरशन करी ले रे मन / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:57, 23 सितम्बर 2016 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरू दरशन करी ले रे मन
जीवन सफल करी ले रे मन

तोरोॅ साथ के छौ जग में
सत्यनाम रटी ले रे मन

संत संगति हरदम करी ले
द्वैत दूर करी ले रे मन

बहु-बेटा स्वारथ के यारी
हिय विचार करी ले रे मन

अंत समय कोई न संगी
नाम जपन करी ले रे मन

बिनु गुरु कोय भेद न पावे
कोटि यतन करी ले रे मन

वेद, पुरान, सन्त कहै छै
हंस नाम जपी ले रे मन।