भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं लिखती हूँ / इब्तिसाम बरकत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 26 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इब्तिसाम बरकत |अनुवादक=मणि मोहन |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं लिखती हूँ
क्योंकि मेरा दिल
एक मुल्क बन चुका है
और मैं चाहती हूँ कि तमाम लोग
इसमें आकर रहें ।

मैं जगह बनाती हूँ
सारे कोनों को
खाली करती हूँ
भय से ।

मैं सुकून बनाती हूँ
बनाती हूँ
एक कप चाय
अपनी और तुम्हारी कहानी के लिए ।

एक कप चाय
हमारे विलगित इतिहासों के लिए
जो आते हैं
एक ही परिवार से
परन्तु एक दूसरे से
बातचीत नहीं करते ।

गर्म चाय और मिंट
मेरी इच्छा है
कि तुम्हें आमन्त्रित करूँ
अपने दिल में ।

क्या आप चाय में
शक्कर लेना पसन्द करेंगे ?

अँग्रेज़ी से अनुवाद : मणि मोहन मेहता