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दर्द से दामन खूब भरा है / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:00, 1 अक्टूबर 2016 का अवतरण (लक्ष्मीशंकर वाजपेयी जी की ग़ज़ल)
दर्द से दामन खूब भरा है।
जीने का भरपूर मज़ा है।
ज़ुल्म का परचम ऊँचा क्यों है
ग़र दुनिया का कोई खुदा है।
कुछ कर लो उतना ही मिलेगा
जो उसने किस्मत में लिखा है।
दुख क्या छू पाएगा उसको
साथ में जिसके माँ की दुआ है।
रात में चीखा एक मछेरा
चाँद नदी में डूब रहा है।
जिस पे उसूलों की दौलत है
उसका कद औरों से बड़ा है।
बेबस होकर जीने वाला
सच पूछो तो रोज़ मरा है।