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खंडित प्रतिमाएँ / लक्ष्मीशंकर वाजपेयी

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अब वे सब की सब
रख दी गई हैं
एक पुराने बरगद के नीचे
यही तरीका है शायद
कि संभव नहीं हो नदी में विसर्जन
तो रख देते हैं "खण्डित प्रतिमाओं" को
किसी पेड़ के नीचे
कभी पूजाघरों में प्रतिष्ठित
इन्हीं के सामने खड़े होते थे लोग
अपनी सम्पूर्ण दयनीयता, विनम्रता
और भक्तिभाव समेटे
जोड़ कर कातर हाथ!
यही बचाती थीं
बच्चों को रोगों से
दिलाती थीं परीक्षाओं में नम्बर
सुधार देती थीं बिगड़ा हुआ पेपर
सुरक्षित ले आतीं थीं बच्चों के पिता को
दूसरे शहरों से
ढ़्यान रखती थी होस्टल में पढ़ रही बेटी का
पूरी हुई कितनी मन्नतें इन्हीं की पूजा से
अब वे उपेक्षित कर दी गई हैं
सत्ता से उतरे सत्ताधीश की भांति
आते जाते कुछ राहगीर
अभी भी जोड़ देते हैं हाथ श्रद्धावश
तब क्या इन्हें भी मिलती होगी
उतनी ही खुशी
जितनी कि मिलती है
स्वयं को उपेक्षित महसूसते
वृद्ध पिता को
लम्बे अरसे बाद अपने बेटे की चिट्ठी पाकर!