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हफ़्तों उनसे मिले हो गए / अल्हड़ बीकानेरी
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:31, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (बीकानेरी जी की ग़ज़ल)
हफ़्तों उनसे मिले हो गए
विरह में पिलपिले हो गए।
सदके जूड़ों की ऊँचाईयाँ
सर कई मंजिलें हो गए।
डाकिए से ‘लव’ उनका हुआ
खत हमारे ‘डिले’ हो गए।
परसों शादी हुई, कल तलाक
क्या अजब सिलसिले हो गए।
उनके वादों के ऊँचे महल
क्या हवाई किले हो गए।
नौकरी रेडियो की मिली
गीत उनके ‘रिले’ हो गए।
हाशिये पर छपी जब ग़ज़ल
दूर शिकवे-गिले हो गए।