भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुभाषचंद / चिराग़ जैन

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:12, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (कवित्त चिराग जैन का)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिनकी धमनियों में डोलता था ज्वालामुखी
मात-भारती के क्रांति-कोष कहाँ खो गए।
राष्ट्र-स्वाभिमान वाली मदिरा का पान कर
होते थे जो लोग मदहोश; कहाँ खो गए।
जिस सिंह-गर्जना से बाजुएँ फड़कतीं थीं
इन्क़लाब वाले जय-घोष कहाँ खो गए।
देश को आज़ादी की अमोल सम्पदा थमा के
नेताजी सुभाष चन्द बोस कहाँ खो गए।