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नया पड़ोसी / चिराग़ जैन
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:57, 2 अक्टूबर 2016 का अवतरण (चिराग जैन की कविता)
पिछले महीने
नया पड़ोसी आया है।
दुश्मन लगता है
पिछले जन्म का।
कमबख्त
पुराने गानों का शौक़ीन है।
रोज़ रात
दुनिया भर के सोने के बाद
युद्ध शुरू करता है।
कभी रफ़ी, कभी हेमंत, कभी लता।
ख़ुद तो सो जाता है
आध-पौन घंटे में
लेकिन उसे क्या पता
क्या क्या गँवा बैठता हूँ मैं
रोज़ रात।
बदला भी लूँ तो कैसे
उसके लिए तो ये सब
सिर्फ़ लोरी के काम आता है
उसे क्या पता
क्या होता है
जब रेकॉर्ड पर बजता है-
"मेरा कुछ सामान तुम्हारे पास पड़ा है"