भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
122.162.33.204 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:35, 1 जून 2008 का अवतरण
रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
दूध बिलोने से पहले
माँ
चक्की पीसती,
और मैं
घूमेड़े में
आराम से
सोता ।
- -तारीफ़ों में बंधीं
- माँ
- जिसे मैंने कभी
- सोते
- नहीं देखा
आज
जवान होने पर
एक प्रश्न घुमड़ आया है--
- पिसती
- चक्की थी
- या माँ?