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ही इतिहास जो ई गुफ़्तो आ / एम. कमल
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ही इतिहास जो ई गुफ़्तो आ।
”हर दौर में क़ातिल थींदो आ॥“
नूरु नक़ाब आहे ऊंदहि जो।
आवाजु़ माठि जो पर्दो आ॥
घरु नथो क़बूलेसि या रस्तो।
हू चाँउठि ते बीठो छो आ!!
ज़िंदगी जे ख़्वाब जे शहर में।
हर खख़्सु शहरु ख़्वाबनि जो आ।
उस असुल नंगी थी बीठी आ।
ख़ामोश वेचारो रस्तो आ॥
छांऊँ गहरीअ सोच में आहिनि।
शख़्सु हू उस में छो बीठो आ?!